‘Baapu’ movie review: तेलुगु फिल्म बापू एक गरीब किसान परिवार में पिता की भूमिका को चित्रित करती फिल्म



एमपी नाउ डेस्क


Baapu’ movie review:
बापू ए फादर्स स्टोरी तेलुगु भाषा में बनी दक्षिण भारतीय फिल्म है, जो सिनेमाघरों में 21 फरवरी 2025 को रिलीज की गई थी। इस फिल्म की राइटिंग और निर्देशन दोनों ही काम दयाकर रेड्डी के. ने किया था। यह एक कॉमेडी जॉनर की फिल्म थी लेकिन मैं इस फिल्म को भारत मे बसने वाले गॉवो में रहने वाले 80 प्रतिशत गरीब किसान की कहानी मानता हूं जो तमाम तरह की परेशानियों से जुझने के बाद भी अपने पारिवारिक मूल्यों को खोने नही देता। कई बार परिस्थितियां हद से ज्यादा बिगड़ने से उसके कदम थोड़े डगमगाते है लेकिन इन चुनौतियों से वह जुझता है और आखिरकार उसे हरा ही देता है, कम से कम इस मूवी में तो।

तेलुगु भाषा में बनी फिल्म बापू ए फादर्स स्टोरी एक छोटे किसान मलैया (अभिनेता ब्रम्हाजी) के परिवार की कहानी है जो कृषि भूमि में आश्रित परिवार हैं, पूरे परिवार का भरण पोषण खेती से प्राप्त आय के माध्यम से होता है। लेकिन लंबे समय से उसकी कपास की फसल खराब हो जाने से पूरे परिवार के ऊपर बहुत अधिक कर्ज हो जाने से कर्जदार मलैया को पैसे लौटाने के लिये दबाव बना रहें होते है। 

पंचायत में होने वाली बेज्जती से मलैया खुब अधिक व्यथित है लोगों का कर्ज चुकानें का एकमात्र रास्ता उसके खेत में लगी कपास की फसल है जहां मलैया की पत्नी सरोजा ( अभिनेत्री आमानी) लहराती हुई फसलों को देखकर उम्मीद जताती है कि इस बार की फसल से कर्जा चुकता हो जायेगा वही दूसरी ओर मलैया का मानना है कि जब तक फसल कटकर मंडी में न बिकें तब तक इसमें चर्चा करना बेकार है। मैलया की हताशा उसके जीवन में घट रही परेशानियों से है जहां उसकी पत्नी सरोजा उसे सांत्वना और ढांढस बनाये रखने के लिए ऐसा व्यवहार करती है चुकिं वह अपने पति के स्वभाव से भलि भांति परिचित है।

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पूरा परिवार बड़े ही उत्साह और उंमग के साथ कपास की फसल को काटता है जिसे मलैया एक टैक्टर की सहायता से मंडी लेकर जाता है लेकिन मंडी में फसल की कीमतों के लिए चल रही हड़ताल के चलते उसे अपनी फसल बेचने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। घर में उसके परिवार के सदस्य उसका इंतजार कर रहे होते उसके नही आने में उसका बेटा (मणि एगुर्ला) ढुंढते हुए मंडी आता है। जहां वह अपने पिता को घर जाकर आराम करने की सलाह देकर टैक्टर के पास रहने का आश्वासन देता है, मलैया भी अपने बेटे को टैक्टर के पास ही रहने की हिदायत देकर घर की ओर चला जाता है। यह बेटा थोड़ा लापरवाह है ऑटो चलाता है, लड़की के चक्कर में है......बाप के जाते ही टैक्टर छोड़कर ड्राइवर के साथ ठेके में शराब पीने चले जाता है उसके पीछे से देर रात बहुत तेज बारिश होने से पूरा कपास गीला हो जाता है।

ये कहानी मलैया नाम के बाप की नही है ना उसके बेटे की। ये कहानी है, मलैया और उसके पिता (बालागाम सुधाकर) की है क्योंकि कर्जा चुकता करने के लिए मलैया मरना चाहता है जिसकी वह कोशिश भी करता है लेकिन बच जाता हैं। दोनों बाप बेटे में मरने को लेकर एक समझौता होता है कि मलैया का पिता ज्यादा उम्र का होने की वजह से वह आत्महत्या करेगा जिससे परिवार को किसान की मृत्यु में मिलने वाली राशि से कर्ज को चुकाया जा सकें। लेकिन परेशानी यह है कि बाप को भुलने की बीमारी है, जब-जब बाप आत्महत्या करने की बात भुलता है फिल्म की कहानी में हास्य पैदा होता है। 

बाप मरेगा या नही........या फिर मलैया को ही अपनी जान देकर कर्जा से मुक्ति पानी होगी। या फिर पूरा परिवार मिलकर ही मलैया के बाप की हत्या कर देगा। क्या फिर और कुछ रास्ता निकलेगा यह जाननें के लिए फिल्म की ओर रुख करना पड़ेगा। फिल्म हंसाती है लेकिन उससे अधिक एक छोटे किसान की दुर्दशा और एक परिवारिक वैल्यू को  समझाने का काम भी करती है। कहीं- कहीं फिल्म थोड़ी बोर कर सकती है लेकिन ऐसे छोटे बजट की फिल्मों की कहानियां सराहनीय होती हैं। फिल्म में कलाकारों का अभिनय फिल्म के बोरिंग भाग में फिल्म में बांधे रखनें का काम करेगा।

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अरविंद साहू (AD) Freelance मनोरंजन एंटरटेनमेंट Content Writer हैं जो विभिन्न अखबारों पत्र पत्रिकाओं वेबसाइट के लिए लिखते है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी सक्रिय है, फिल्मी कलाकारों से फिल्मों की बात करते है। एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय माखन लाल चतुर्वेदी के भोपाल कैम्पस के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के छात्र है।

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